इस सृष्टी में ब्रम्हा ने मनुष्य की उत्पत्ती के साथ रोगरूपी श़त्रुओं से शरीर की सुरक्षा के लिए विषेश औषधीय गुणोंसे युक्त वनस्पतीयों को भी इस जगत मे पैदा किया । जिनका उपयोग हम जडीबुटीयोंके रूप में करते है।इसमें औषधी तत्व होनेसे रोगो को दूर करने की क्षमता अपूर्व होती है।अपने प्राकृतिक गुणो के कारण ये शरीर के अंदर आसानी से बच जाती है,और शीघ्र ही शोषित भी कर लेती है।लेकिन ये जडीबुटीयां हमारे लिए अमृत तूल्य तभी हो सकती है जब उनके उचित प्रयोग का समूचित ज्ञान हो।
मॉ रेवा के सानिध्य में स्थित होशंगाबाद जिला अपने आप में मध्यप्रदेश की एक धरोहर है। यहां वन तथा वनवासियों की प्रचुर भाग में निवास है। वन संपदा में जड़ी बूटियां वनोाधियों की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में है। वन औाधि को जानने वाले लोगों की संख्या भी पर्याप्त है। किन्तु समुचित प्रशिक्षण तथा मार्गदर्शन के आभाव के कारण इसका दोहन ठीक से नहीं हो पा रहा है। जिसमें रोजगार की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है। कि विस्थापन की समस्या बढ़ती जा रही है। यहां वनोाधी के जानमकार बड़ी मात्रा मेें वन औड्ढधी उपज एवं इलाज के द्वारा वनवासी लोगों की स्वाबलंबन की तरफ बढ़ाना इस प्रकल्प के द्वारा बच्चों एवं माताओं के स्वास्थ्य एवं समृद्धि करना इस प्रकल्प को तैयार किया गया है।
एक सामान्य सर्वेक्षण के आधार पर देखा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रो में स्वास्थ सुविधाओं का अभाव है।एलोपेथी की तुलना आयुर्वेद का स्तर गिर रहा है।हरित क्रांति के युग के बाद नये संकरीत बीज एवं रासायनिक खादो का प्रयोग जिस गति से हु्आ उतनी ही तेजी से रोग भी बढे है। जडीबुटी के माध्यम से तथा आयुर्वेद से इस समस्या का समाधान होने हेतू प्रयास तेज हो गये है।ग्रामीण क्षेत्र की महिला एवं बच्चो के स्वास्थ की चिंता एवं उपचार हेतू आसानी से उपलब्ध जडी-बुटी की उपचारपध्दती की जानकारी हो इस उद्वेश से प्रोजेक्ट प्रारंभ किया गया है।
इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद अहम् भूमिका अदा कर रहा है। परिषद में वनौषधी क्षेत्र के विशिष्ट विषयों को लेकर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का समन्वय कराते हुए प्रशिक्षण एवं प्रचार प्रसार को बढ़ाने का कार्य विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से प्रारंभ किया है।
न्यास आत्म निर्भर और स्वाबलंबी बने इस हेतु कृपि तथा बागवानी के क्षेत्र में प्रयास कर रहें हैं। न्यास में पूर्व उपलब्ध अनुपयुक्त भूमि जिसका स्वरूप जंगल के समान हो चुका था । वर्पों से पड़ी बेकार भूमि जिसमें झाड़ी आदि साफ कराकर कृपि योग्य बनाया गया। इस हेतु मई 2011 में विभिन्न यांत्रिक विधियों द्वारा सुधार किया गया। जून 2011 मंे अनार पौध रोपण की पूर्व तैयारी की गई। तथा किसान इरीगेशन कंपनी द्वारा ड्रिप सिस्टम द्वारा लगाया गया। जिसके लिए मध्य परिक्षेत्र में नलकूप खनन का कार्य हुआ तथा 250 फीट गहरा सफल नलकूप लगाया गया। तथा आवश्यकता पड़ने पर वेणु भारती परिसर के नलकूप से सिस्टम का कनेक्सन किया गया। पूरे ड्रिप सिस्टम में 90M.M. 75M.M. तथा 63M.M. पाइपों का प्रयोग हुआ । तथा 16 M.M. की लेटरल बिछायी गई। एक लेटरल पर अधिकतम 30 पौधे रखे गए।
माह जून में 70 ट्राली सड़ी गोबर की खाद क्रय की गई जिसको मजदूरों द्वारा चिन्हित बैडों पर डाला गया। एवं मिट्टी में मिलाया गया।
संपूर्ण रोपित क्षेत्रफल 13.5 एकड़ जिसमें 6500 सिंदूरी किस्म के अनार के पौधे रोपित हैं। जिनका रोपण प्रथम सप्ताह जुलाई 2011 में पूर्ण हुआ।
रोपण के पहले बैडों पर 10 कि.ग्रा. प्रति बैड सड़ी गोबर की खाद तथा 500 ग्रा. एस.एस.पी., 1ली. प्रति बैड क्लोरोपायरीफास 20 ई.सी. का प्रयोग किया गया। बरसात में ऊगे अनावश्यक खरपतबारों को टेक्टर एवं मजदूरों द्वारा निकाला गया। तथा कीटों की रोकथाम हेतु विभिन्न प्रकार के रसायनों का समय-समय पर प्रयोग किया गया।
खरीफ के मौसम में मूंगफली की फसल उगाई साथ ही दो एकड़ भूमि में मिर्ची, बैंगन, टमाटर आदि सब्जियों को उगाया गया। इसके अलावा नबम्बर 2011 में आलू, चना, मटर, प्रयोग के तौर पर लगाए।
फेंसिंग के आसपास अर्जुन, बांस के पौधों का बरसात में रोपण किया गया। जिनमें अधिकांशतः पौधे स्वस्थ और प्रगति पर है।
मजदूरों हेतु यह ध्यान रखा गया कि ग्राम पलिया पिपरिया के प्रत्येक मजदूर परिवार से कम से कम एक सदस्य को समय समय पर मजदूरी उपलब्ध कराई। तथा जरूरत मंदों को प्राथमिकता दी गई। ग्राम की पिछड़ी समाज रझड़ एवं ठाकुर आदिवासी जो “शराब बनाने का काम मुख्य रूप से करते है। जिस हेतु हमारे पेड़ों को जबरजस्ती काटते थे। एवं हमारे प्रति नाकारात्मक व्यवहार रखते थे। अनार में मजदूरी के माध्यम से जोड़ा एवं उनके बीच अपनी पहुंच बनाई, जिसके चलते आज पूर्व समस्या हरे भरे पेड़ों को काटना बंद हो गया। और हमारे सामाजिक तथा अन्य कार्यों में इनकी सहभागिता बढ़ी।
इस प्रकल्प की स्थापना सन 1993 मे समग्र ग्राम विकास का लक्ष्य सामने रखकर हुइ थी इसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रो के बालको के शिक्षण सामाजिक समरसता शारीरिक बौध्दीक तथा चारित्रक विचार को ध्यान मे रखकर किया है ।
शरद स्मृति छात्रावास उद्योग आधारित शिक्षा का प्रयोग पिछले कइ साल से कर रहा है।
न्यास परिसर में कोसम के वृक्षों की संख्या 485 है। इन वृक्षों पर लाख का बीज वृक्षों पर चढ़ाकर लाख का उत्पादन किया जाता है। समीपस्थ ग्राम पलिया पिपरिया में निवासरत् रझड़ समाज के बंधुओं की आजीविका हेतु अतिरिक्त आय प्राप्त हो और अपने परिवार का भरण पोषण ठीक प्रकार से कर सके इन सभी बिंदुओं पर विचार कर न्यास समिति द्वारा रझड़ समाज के 60 परिवारों को 5 वृक्ष प्रति परिवार आवंटित किए। प्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रत्येक वृक्ष पर राशि 100रू. प्रति वृक्ष की दर से वार्षिक न्यास कार्यालय में जम ा की गई। न्यास द्वारा अनुबंध पर बीज उपलब्ध कराया गया। रझड़ समाज जो कि मुख्य रूप से शराब बनाने का कार्य करते थे । और वह हमारे वृक्षों की क्षति पहुंचाते थे। लाख के माध्यम से ये परिवार न्यास से जुड़े और उनकी सहभागिता बढ़ी है। लाख का उत्पादन कर अतिरिक्त आय इन परिवारों को प्राप्त हुई जिससे वह परिवार का भरण पोषण करने मे सक्षम हुए।
ये परिवार लाख का रखरखाव , बीजारोपण ठीक प्रकार से कर सके इस निमित्त एक दिवसीय लाख प्रशिक्षण का कार्य क्रम भी न्यास परिसर में किया गया। जिसमें वनविभाग एवं अन्य जगहों से लाख के विशेषज्ञों द्वारा इन परिवारों को प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रशिक्षण में 254 लोगों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया ।
गौशाला की स्थापना सन 1993 में हुई सन 1994 में भारत भारतीय बैतूल द्वारा 12 गाय प्राप्त हुई । जिसमें 8 गाय व 4 बछड़े प्राप्त हुए सन 1994 से न्यास द्वारा वृ़द्ध गायों की सेवा का कार्य प्रारंभ किया गया । जिसमें विभिन्न ग्रामों से आई गायों की संख्या में वृद्धि हुई और वृद्ध गायों की सेवा का कार्य चल रहा है ।
गौसंवर्धन बोर्ड द्वारा सन 08 12. 2003 में मान्यता प्राप्त हुई पंजीयन क्रमाकं 438।जीव जन्तु बोर्ड चैनई द्वारा मान्यता सन 2010 में प्राप्त हुई ।
सन् 2010 में 60 वृद्ध गाय रहीं व सन 2011 से 40 गायों की सेवा की जा रही है । जिसमें दुधारू गाय 6 है, 3 गाय ज्ञावन हैं 6 गीर नश्ल की हैं एक गिर नश्ल का नन्दी है, 2 गीर नश्ल की दुधारू गाय है एक हरियाणा नश्ल का नन्दी है व एक देशी नन्दी है व तीन बैल व एक वृद्ध नन्दी है, 10 वृद्ध गाय हैं, 10 छोटे बच्चे जिसमें 6 बछडे़ व 4 बछियां हैं, गाय रखने के लिये 80 35 का भवन है व भूसा गह है जिसमें 100 ट्राली भूसा भरा जाता है सन् 2010 नया भूसा घर का निर्माण हुआ है 200 ट्राली भूसा भरा जा सकता है । गायो को पानी पीने के लिये पानी की टंकी है और एक ट्यूवबेल है जिससे पानी भरा जाता है खेती के लिये उपयोगी है । गौशाला में सेवारत् कर्मचारी की संख्या 4 है
गौशाला के लिये एक उप समिति है जो समय समय पर गौशाला के विषयों पर चिंतन करती है व गौशाला के लिये अन्न दान व भूसा दान के लिये ग्रामों के बड़े किसानों से दान के लिये सहयोग करवाते है । और गौशाला की समिति की वर्ष में 3 बैठके होती है जिसमें गौशाला की समस्याओं का हल करने का विचार विमर्श करते हैं।
न्यास द्वारा 15 गौदान पात्र भी रखे गये हैं । गौशाला की गायों के लिये डेढ़ एकड़ भूमि हरे घास, बर्सिम, चरी की समय समय पर बोई जाती है गायों को घूमने के लिये, चराने के लिये 5 एकड़ में हरी घास लगाया गया है । गायों को दाना व सानी भी दी जाती है गायों की स्वास्थ्य की जांच के लिये पशु चिकित्सक भी यहां सप्ताह में 2 बार आते है । गायों के स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन भी किया जाता है जिसमें विभिन्न ग्रामों के पशु पालक लाभांवित होते है ।
गौवर गैस प्लांट जिससे भोजनालय के लिये उपयोगी है गौवर गैस की सैलरी खाद खेती के लिये उपयोग में लिया जाता है । गोवर से तैयार खाद हमारे यहां अनार में 20 ट्राली दिया गया व जड़ी बूटी में 5 ट्राली खाद दिया गया व गन्ना में में 10 ट्राली गोवर खाद दिया गया है।
गौशाला द्वारा उत्तम खेती के लिये हर वर्ष किसान सम्मेलन का आयोजन किया जाता है जिसमें कृषि विशेषज्ञों द्वारा किसानों को अच्छी खेती के बारे में जानकारी दी जाती है । व जैविक खेती के बारे में प्रशिक्षण दिये जाते हैं जिससे यहां के विभिन्न ग्रामों के किसान लाभांवित होते हैं व अच्छी खेती भी कर रहे हैं ।
भूसा घर बैल गाड़ी कटिया मशीन पानी की टंकी